रायपुर। ये है मंदिरों का शहर आरंग। यहां सौ से अधिक मंदिर-देवालय हैं। आरंग शहर की कहानी रक्त से लिखी गई है। आरा और अंग ये दो शब्दों से मिलकर बना आरंग। इसके पीछे एक मार्मिक और पौराणिक कहानी है। जब राजा-रानी ने साधु के भेष में पहुंचे श्रीकृष्ण-अर्जुन को दिए गए वचन को निभाने के लिए अपने बेटे को आरा से चीरकर शेर को भोजन परोसा । बेटे की कुर्बानी देकर वचन निभाई। इस तरह से रक्त से लिखी गई है आरंग की ऐतिहासिक कहानी।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 36 किलोमीटर दूर स्थित है दानवीर राजा मोरध्वज की नगरी आरंग। आरंग को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहां सौ से भी अधिक मंदिर हैं। शहर के कोने-कोने में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित हैं।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि राजा मोरध्वज प्रतापी और महादानी राजा थे। जिन्होंने मुनि के वेश में पहुंचे श्रीकृष्ण और अर्जुन के शेर को भोजन कराने का वचन दिया। बाद अपना वचन निभाने के लिए बेटे ताम्रध्वज को आरा (कांटेदार औजार) से काटकर परोसा। शर्त यह थी कि राजा-रानी के आंख से आंसू नहीं निकलना चाहिए। इस मार्मिक कहानी से आरंग शहर का नामकरण और इतिहास जुड़ा है।
आरंग के बस स्टैंड में रानी पद्मावती और राजा मोरध्वज के द्वारा अपने बेटे ताम्रध्वज को आरा से चीरते हुए मूर्तिकला से प्रदर्शित किया गया है। जिसमें आरा और अंग से मिलकर आरंग नामकरण होना दिखाया गया है। इस किवदंती और पौराणिक कथा से ही इस नगर का नाम आरंग पड़ा, ऐसी जनश्रुति और मान्यताएं हैं।
जब राजा ने पुत्र के शरीर का आधा अंग दान में देने दिया वचन
इतिहासकारों के अनुसार हैहयवंशी राजा मोरध्वज कोसल राज्य के महाराजा थे। इनकी राजधानी आरंग थी, जिसका नाम आधे अंग को आरा से काटे जाने के कारण आरंग पड़ा है। सामाजिक कार्यकर्ता व आरंग के इतिहास के जानकार शिक्षक महेंद्र पटेल बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत का युद्घ जीतने के बाद पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ करने का ऐलान किया।
इस यज्ञ का विधान होता था कि एक घोड़ा को स्वच्छंद विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाता और यदि उस अश्व को किसी ने पकड़ लिया तो यह माना जाता था कि वह युद्घ के लिए चुनौती दे रहे हैं। पांडवों द्वारा छोड़े गए घोड़े को राजा मोरध्वज ने पकड़ लिया। इससे अर्जुन क्रोधित हो गए और युद्घ करने पर उतारू हो गए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रोका और राजा मोरध्वज की विशेषताएं बताई। दोनों ने मिलकर राजा की दानशीलता और त्याग की परीक्षा लेने के लिए आरंग पहुंचे।
राजा मोरध्वज जैसे ही उनके स्वागत-सत्कार के लिए आए । साधु के भेष में पहुंचे श्रीकृष्ण ने कहा- राजन ! मेरा शेर अर्से से भूखा है,इसे मांस चाहिए। मोरध्वज ने कहा इसे मैं भोजन अवश्य कराउंगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरे सिंह को मानव मांस चाहिए। राजा ने अपना शरीर समर्पित करने आगे बढ़ाया।
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इस शेर को तुम्हारे पुत्र के दाहिने अंग का ही मांस चाहिए। राजा ने अपना वचन निभाने के लिए रानी के साथ मिलकर बेटे पर आरा चलाई। और वे श्रीकृष्ण के द्वारा लिए जाने वाले परीक्षा में सफल भी हुए। तब से यह नगरी आरंग के नाम से प्राख्यात है। ऐसी किवदंती है कि ईश्वर कृपा से राजा मोरध्वज के बेटे ताम्रध्वज पुर्नजीवित हो गए थे।