हमारे भारत देश में यह नारा माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का है। पर लोगों में तरह-तरह की चर्चाऐं है कि, यह नारा एक पहेली बनकर रह गया है। जैसे वक्फ बोर्ड को लेकर तरह-तरह की बाते चल रही है। पर सोचने वाली बात है कि, जब हमारे भारत देश में बाबा साहब अम्बेडकर जी ने संविधान बनाया, तब उस संविधान में वक्फ बोर्ड का कोई उल्लेख नहीं है। तो वक्फ बोर्ड को न्यायालय द्वारा संज्ञान में नहीं लेना चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, लोकसभा एवं राज्यसभा में वक्फ बोर्ड कानून पास होने के बाद, जब महामहीम राष्ट्रपति द्वारा वक्फ बोर्ड पर मंजूरी के लिए सील लगा दिया गया तो न्यायालय पर एक कहावत बन गयी – ‘‘आ बैल मुझे मार’’। जानकार सूत्र बताते है कि, सुप्रिम कोर्ट को संज्ञान में लेकर एक बवाल खड़ा हो गया है। जो देश के लिए घातक है। इससे उप राष्ट्रपति व राष्ट्रपति का सम्मान खतरे में आ गया है। वहीं जब लोकसभा एवं राज्यसभा का कार्य एक कानून बनाने का प्रक्रिया है तो उसमें न्यायालय को विवाद उत्पन्न नहीं करना चाहिए। इससे प्रतीत होता है कि, देश की अखण्डता खतरे में पड़ जायेगी।
मिली जानकारी के अनुसार, जगह-जगह हिन्दुओं पर मार-काट होना शुरू हो चुका है। जैसे जन्मू कश्मीर और बंगाल में जात पूछ-पूछ कर हत्यायें हो रही है। इसका जिम्मेदार कौन ? एक राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है जिसकी टिप्पणी करना अनुचित है। जबकि चर्चा का विषय बना हुआ है कि, न्यायालय न्यायाधीशपति का समय सीमा खत्म होने को देखते हुए न्यायालय को विवादित स्थानों को स्थगित कर देना चाहिए। जो आज जगह-जगह हिन्दु-मुस्लिम एक बहाना बना हुआ है जबकि यादव, क्षत्रिय, ब्राह्यण को इन सब में कोई लेना देना नहीं, पर आपसी में मार-काट मचाये हुए है। जबकि स्वार्थी लोग वक्फ बोर्ड के नाम से जमीनों पर कब्जा, जमीनों को बेचना और धर्म के नाम पर व्यापार बनाकर रखे हुए है। एक कहावत है ‘‘फुट डालो और शासन करो’’। यह निति अपनाये हुए है।
अब माननीय महामहीम व सर्वोच्च न्यायालय को आने वाले समय को देखते हुए देश को गर्क में न ले जाये। जिससे हिन्दु समाज को आपस में लड़-लड़कर जान गवानी पड़े। यह समाज के बुद्धजीवियों का विचार है इस पर आगे भी विचारधारा लिखी जा सकती है।