Home छत्तीसगढ़ पत्रकारिता के नाम पर ड़ाल रहें ड़ाका…..

पत्रकारिता के नाम पर ड़ाल रहें ड़ाका…..

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केन्द्र शासन व राज्य शासन ऐसे लोंगो पर कार्यवाही करनें में नाकाम रहती है जो प्रेस के संगठनों में रहकर वरिष्ठ- वरिष्ठ पद पर पत्रकारिता को बदनाम करते है। जो पत्रकारिता की एक भी लाईन नहीं लिख सकते। फर्जी ढ़ंग से 15 अगस्त 26 जनवरी होली और दिवाली के मौके पर विज्ञापनों के लिस्ट बनाकर विज्ञापन छपवाकर रायपुर से लाते है। जिसमें प्रिन्ट लाइन देखा जाये तो स्वत्वाधिकारी सम्पादक प्रकाशक मुद्रक का उल्लेख नहीं लिखा होता है। ये कैसा समाचार पत्र है। एक ऐसा भी व्यक्ति है जो समाचार पत्र पर 40 विज्ञापन डलवाता है और एक विज्ञापन का मूल्य 11 हजार रूपया है 40 विज्ञापन का मूल्य लगभग 4 लाख 40 हजार रूपये होता है अनुमान लगा लिजिये की हर राष्ट्रिय त्यौहारों पर 26 जनवरी 15 अगस्त में एक राष्ट्रिय त्यौहार का 80 लाख का विज्ञापन का वसूली करता है दोनों राष्ट्रिय त्यौहारों का जोड़ा जाये तो लगभग 1 करोंड 80 लाख रूपया निकालता है।

जबकि यह पत्रकार पढालिखा नहीं है और आईएस आईपीएस को गुमराह करके रखा है। अभी हाल ही में प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ लोंगो द्वारा बिहारपुर रेंजर से जानकारी मांगी गई तो पूर्व रेंजर द्वारा उसको 20 हजार रूपये देने को कहा गया जबकि अनपढ़ पत्रकार ये तक नहीं जानता की 20 हजार रूपये में कितनें जीरों होते है। कहीं-कहीं तो ऐसा भी फसा है कि पढ़ने या लिखनें को कहा जाता था तो कहता था। कि मैं चश्मा घर भुल गया हॅॅू। इसी प्रकार बाप-बेटे अधिकारियों को चमकाकर व धमकाकर पैसा लेते है। सोचने वाली बात है कि एक अनपढ़ व्यक्ति पढ़े लिखों को कैसे बेवकूफ बना सकता है। अब तो अनपढ़ पत्रकार ने एक पढ़ा-लिखा पीए भी रखा है। राज्य शासन को चुनौती दे रहा है। समाचार पत्र के संपादक द्वारा जब दो संभाग का चीफ ब्यूरों बना दिया गया। तो ऐसे विद्वान अनपढ़ पत्रकार को संपादक क्यू नहीं बना दिया गया। ऐसे पत्रकारों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा रहा है। पत्रकार समाज को आईना दिखानें वाला पद होता है जिसको लोग अपना व्यापार का तरीका बना लिये है। सरगुजा संभाग में ऐसे पत्रकारों का लिस्ट तैयार किया गया है जो खाली समाचार पत्रों से जुडे हुये है।

जिस शासकिय कर्मचारी द्वारा पैसा नही दिय जाता तो उस कर्मचारी का समाचार प्रकाशन तैयार करना तय है। ऐसे संपादको को सचेत रहना चाहिए कि हमारे समाचार पत्र का दूसरा व्यक्ति लाभ ना उठा पाये। समाचार पत्र के संपादक को एक बार दो तीन हजार रूपये देकर संभाग ब्यूरों या संवाददाता का कार्ड लेकर अधिकारियों को धमकाना व पैसा निकालना और पैसा ना देने पर संपादक को गलत जानकारी देकर समाचार प्रकाशन कराना होता है। इनका मुख्य उददेश्य कर्मचारियों से पैसा निकालना होता है। अभी-अभी कुछ सातिर टाईप के पत्रकारों के द्वारा एक अधिकारी से पैसा ले लिया गया और उस अधिकारी की प्रशंसा का पुलंदा बनाया गया जैसे हाई कमान उस सातिर पत्रकार के जेब में हो। ऐसे लोग जिनको अभी हाल ही में एक अधिकारी के यहां से पुलिस विभाग के द्वारा उठा लिया गया था। ऐसे फर्जी पत्रकार ही संगठनों को धूमिल कर रहे है। ऐसे पत्रकारों की लिस्ट जारी किया जाना चाहिये जो कि भ्रष्टाचार को जन्म दे रहा हो।

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