छत्तीसगढ़ :- राज्य शासन की धान खरीदी योजना को लेकर लोगो द्वारा किये जा रहे है तरह-तरह की बाते छ0ग0 धान खरीदी केन्दों में जो कि राज्य शासन द्वारा 40 किलो 700 ग्राम खरीदनें का नियम बनाया गया था। पर प्रबंधकों के द्वारा 41 किलो 600 ग्राम व 42 किलो तक बोरे में खरीदा गया। प्रबंधक कम्प्यूटर आपरेटर और निगरानी समितियों के द्वारा दिन दहाडे किसानों को लूटा गया। जानकार सूत्र बताते है कि 100रू प्रति क्विंटल के हिसाब से प्रबंधक व कम्प्यूटर आपरेटर द्वारा पैसा लिया गया। जो कि धान खरीदी नियम से अधिक खरीदा गया। उसमें प्रबंधक की मीलर से हिस्सेदारी बताई जा रही है।
प्रबंधको द्वारा अपना संगठन बनाकर-बनाकर शासन और प्रशासन पर दबाव बना रहे है। लोंगो द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ ही समितियां ऐसी रही जो कि विवाद से अलग रहीं- जैसे सलका सोनहत जामपारा बलरामपुर जशपुर रायगढ़ खरसिया कोरबा ये सभी जिले विवाद से अलग रहे। विवादित जिलें में -रामानुजनगर देवनगर रजौली महासमुन्द कांकेर राजनांदगांव बरबसपुर बेमेतरा जिसमें सबसे ज्यादा विवादित गिरजापुर धान खरीदी केंन्द्र रहा। लोगो में ये भी चर्चा है कि 16 हजार 2 सौ बोरा के अलावा 7 से 8 हजार बोरा और भी मिलनें के आसार थे पर वो बारदाने जांच में नहीं पकड़ाये गये। गिरजापुर धान खरीदी केन्द्र पूर्व से ही विवाद में रहा है।
जब इनके खिलाफ प्रशासन नें कार्यवाही किया तो कुछ लोगो को उस कार्यवाही से वंचित क्यो किया गया जबकि ऐसे पछपात करनें से अपराधियों के हौसले बुलंद हो सकते है। समिति में जितनें भी कार्यकर्ता होते है सभी को कानून के दायरे में रखना चाहिये। लोगो द्वारा ये भी बोला जा रहा है कि पुलिस प्रशासन किसी के दबाव में आकर अपराधियों को संरक्षण दे रहा है। जानकार सुत्र बताते है कि कुछ अपराधियों को बचानें के लिये मंत्री का फोन आया उस दबाव में आकर पुलिस प्रशासन द्वारा और भी लोगो को बचाया गया है। दैनिक समाचार पत्र में अपराधियों के नाम घोषित किये जा चुके है। पर फिर भी मुख्य अपराधियों को क्यों बचाया जा रहा है। पुलिस कि विचाधारा को लोग संदेह के दायरे से देख रहे है। पुलिस चाहें तो किसी को भी पकड़ सकती है और चाहें तो किसी को भी छोड़ सकती है। लोगो द्वारा ये भी बोला जा रहा है कि पैसे का बल व नेतागिरी साफ-साफ देखने को मिल रहा है।