रायपुर :- प्रकृति ने बस्तर को छप्पर फाड़कर सौंदर्य दिया है. इसके साथ ही एक प्रकृति मसाला भी दिया है, जो अपने आप पत्थरों, पेड़ की छाल और पुरानी दीवारों पर उगता है. इस मसाले की खूशबू और आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल भारत में सभी शाहाकारी और मांसाहारी भोजन में किया जाता है.
बहुत ही कम ही लोगों को पता होगा कि यह मसाला बस्तर, कांकेर के जंगलों से लोगों के घर तक पहुंचाता है. कांकेर में महिलाएं इसे मसाला पाउडर में मिलाकर रखती हैं, जिसका इस्तेमाल वो हरी सब्जियों, साग और दाल को फ्लेवर देने में करती हैं. दक्षिण भारत के इलाकों में पसंद किया जाने वाला खास मसाला है, जो मराठी, पूर्वी भारतीय और चेट्टिनाड व्यंजनों में डाला जाता है.
‘स्टोन फ्लावर’ या ‘पत्थर फूल’ एक खास मसाला है. इसे चट्टानों से एकत्र किया जाता है, और फिर सुखाया जाता है. स्थानीय भाषा में इसे छबीला कहा जाता है. काले पत्थर के फूल पेड़ों और चट्टानों पर स्वाभाविक रूप से बढ़ता है, और इसके लिए किसी बड़े प्रयास या उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है. यह पेड़ों, चट्टानों और पत्थरों पर बिना किसी खेती के अपने आप उग जाता है.
पत्थर के फूल, दागड़ फूल या कालपासी ने नाम से पहचाना जाता है. महाराष्ट्र में इसे चबीला को दगड़ के फूल भी कहा जाता है. यह भारत के अन्य क्षेत्रों पठार में मिल जाता है. मसाले की तरह काले फूल को सुखाया जाता है, और खास तरीके से तैयार किए जाने वाले महाराष्ट्रियन गोडा मसाले में मिलाया जाता है. अंग्रेजी में इस फूल को ‘ब्लैक स्टोन’ कहते हैं.
साधारण से दिखने वाले इस फूल में कई औषधीय गुण होते हैं, जिसके कारण इसे बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग किया जाता है. ये सूखे हुए मशरूम या सूखे हुए फूलों की तरह नजर आते हैं. दगड़ फूल में एंटी-इंफ्लेमेट्री गुण होते हैं, और ये पुरुषों के गुप्त रोगों में भी बड़ा फायदेमंद माना जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार, स्टोन फ्लावर अपने मूत्रवर्धक गुण के कारण शरीर में मूत्र उत्पादन को बढ़ाकर गुर्दे की पथरी को दूर करने में उपयोगी है. स्टोन फ्लावर का पाउडर, घाव भरने में बहुत प्रभावी है, क्योंकि इसमें जीवाणुरोधी और एंटी इन्फ्लेमेट्री गुण होते हैं. मूत्राशय और मूत्र पथ में पथरी यूरोलिथियासिस है. आयुर्वेद में इसे मूत्राश्मरी के नाम से जाना जाता है. गुर्दे की पथरी वात-कफ उत्पत्ति की एक स्थिति है, जो मूत्रवह स्रोत में रुकावट का कारण बनती है.