Home छत्तीसगढ़  छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पर्व  छेरछेरा पुन्नी पर दान का विशेष महत्व…………

 छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पर्व  छेरछेरा पुन्नी पर दान का विशेष महत्व…………

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में धान और अन्न के दान का सबसे बड़ा पर्व लोकपर्व छेरछेरा पुन्नी 6 जनवरी 2023 को उत्साह के साथ मनाया जाएगा. इस दिन को पौष पूर्णिमा व शांकभरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी का अलग ही महत्व है. वर्षों से मनाया जाने वाला ये पारंपरिक लोक पर्व साल के शुरुआत में मनाया जाता है. इस दिन रुपए-पैसे नहीं बल्कि अन्न का दान करते हैं. इस पर्व में सरकार भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है.

छेरछेरा :– महादान और फसल उत्सव के रूप त्यौहार मनाया जाने वाला छेरछेरा तिहार छत्तीसगढ़ के सामाजिक समरसता, समृद्ध दानशीलता की गौरवशाली परम्परा का संवाहक है. इस दिन छेरछेरा कोठी के धान ल हेरहेरा’ बोलते हुए गांव के बच्चे, युवा और महिलाएं खलिहानों और घरों में जाकर धान और भेंट स्वरूप प्राप्त पैसे इकट्ठा करते हैं और इकट्ठा किए गए धान और राशि से वर्षभर के लिए कार्यक्रम बनाते हैं. छत्तीसगढ़ के किसानों में उदारता के कई आयाम दिखाई देते हैं. यहां उत्पादित फसल को समाज के जरूरतमंद लोगों, कामगारों और पशु-पक्षियों के लिए देने की परम्परा रही है.

 पर्व का महत्व :- छेरछेरा का दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है, यह बड़े-छोटे के भेदभाव और अहंकार की भावना को समाप्त करता है. फसल के घर आने की खुशी में पौष मास की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है. इसी दिन मां शाकम्भरी जयंती भी मनाई जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं. शुल्क पक्ष की पूर्णिमा के दिन (6 जनवरी) मनाया जाने वाला पूर्णिमा छेरछेरा पुन्नी पर्व अन्नदान का महापर्व है. पौष पूर्णिमा धान के लिए प्रसिद्ध है. संपूर्ण भारतवर्ष में इस शुभदिन अन्न, दलहन-तिलहन का दान करना बेहद शुभ माना जाता है. यह सूर्य के उत्तरायण की प्रथम पूर्णिमा है. अत: इसका विशेष महत्व माना गया है.

ऐसा माना जाता है कि देवी भगवती ने पृथ्वी पर अकाल और गंभीर खाद्य संकट को कम करने के लिए शाकम्भरी मां का अवतार लिया था. इन्हें सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है. शाकम्भरी नवरात्रि की पूर्णिमा का महत्व अत्याधिक है. इस दिन को पौष पूर्णिमा के नाम से देश के विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है. इस दिन की शुरुआत इस्कॉन के अनुयायी या वैष्णव सम्प्रदाय के लोग पुष्य अभिषेक यात्रा से करते हैं. इस दिन लोग पवित्र नदी पर जाकर स्नान करते हैं. ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है. साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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