रायपुर। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गंगरेल बांध स्थित मां अंगारमोती के मंदिर में हर साल मडई के मौके पर हजारों लोगों की भीड़ जुटती है। निसंतान महिलाएं खासतौर पर इस दिन मंदिर पहुंचती हैं। ध्वज और मडई लेकर जाते बैगाओं के सामने पेट के बल लेटकर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए कामना करती हैं।
जिला मुख्यालय धमतरी से 12 किलोमीटर की दूरी पर गंगरेल बांध है। इसी क्षेत्र में मां अंगारमोती का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर साल दिवाली के बाद पड़ने वाले प्रथम शुक्रवार को मेला मडई का आयोजन होता है। गंगरेल बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले 52 गांव के देवी-देवताओं को लेकर वहां के बैगा हर साल मडई में पहुंचते हैं। आस-पास के गांवों के आंगा देवताओं को लेकर भी बैगाओ की टोली पहुंचती है।
यहां की मडई को देखने के लिए हजारों लोग दूर-दराज के इलाकों से आते हैं। मडई के दिन निसंतान महिलाएं बड़ी संख्या में यहां पहुंचती है। 20 नवंबर को मां अंगारमोती की मडई में 200 से ज्यादा निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंची थीं। मान्यता के अनुसार मड़ई, ध्वज और डांग लेकर चल रहे 11 से अधिक बैगाओं की टोली के सामने वे पेट के बल लेट गई। बैगाओं की टोली महिलाओं के ऊपर से गुजरी। मान्यता है कि इस तरह महिलाओं के लेटने और उनके ऊपर से बैगाओं के गुजरने से माता की कृपा मिलती है और निसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है।
मां अंगारमोती मंदिर में मडई के अवसर पर ध्वज और मडई लेकर गुजर रही बैगाओं की टोली के सामने जमीन पर पेट के बल लेटना अंधविश्वास है या आस्था, इसकी चर्चा लोगों में होती रहती है। कई लोग इसे अंधविश्वास की पराकाष्ठा कहते हैं। इस तरह बैगाओं के सामने लेटने से बैगा महिलाओं के शरीर के ऊपर से चलते हुए उन्हें रौंद कर गुजरते हैं। दूसरी ओर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिनकी आस्था इस परंपरा में है। वर्ष 1973 में गंगरेल बांध बनने के पहले इस क्षेत्र में 52 गांव का वजूद था। महानदी, डोड़की नदी तथा सूखी नदी के संगम पर ही तीन गांव चंवर, बटरेल तथा कोरलम स्थित थे। पूर्व में इन गांवों के टापू पर स्थित मां अंगारमोती की मूर्ति को बांध बनने के बाद बांध किनारे ही स्थापित कर दिया गया।
अभी भी 52 गांव के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मां अंगारमोती के दरबार पहुंचते हैं। क्वार और चैत्र नवरात्र में हजारों श्रद्धालु यहां मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित करते हैं। माता के दरबार में सिद्घ भैरव भवानी, डोकरा देव, भंगाराम की स्थापना है। 400 वर्षों से कच्छप वंशीय (नेताम) ही मां अंगार मोती की पूजा सेवा करते आ रहे हैं।