रायपुर। स्वच्छ सर्वेक्षण-2020 की राष्ट्रीय रैंकिंग में एक लाख से 10 दस लाख आबादी वाले शहरों में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर को शीर्ष स्थान हासिल हुआ। इससे पहले भी इस संवर्ग में अंबिकापुर शहर को यह राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हो चुका है। अंबिकापुर शहर के कचरा प्रबंधन मॉडल को आज देश के 16 प्रमुख शहरों में अपनाया गया है। इसके अलावा नेपाल के भी कई बडे़ शहरों में अंबिकापुर मॉडल के आधार पर कचरा प्रबंधन का काम हो रहा है।
अंबिकापुर को स्वच्छता के मामले में यह राष्ट्रीय गौरव दिलाने का श्रेय एक महिला अधिकारी को जाता है। वर्तमान में भारत सरकार के आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय में संपदा निदेशक के रूप में काम कर रहीं आईएएस अफसर ऋतु सैन उस दौरान अंबिकापुर की कलेक्टर थीं। उन्हीं ने शहर में कचरा प्रबंधन का मॉडल विकसित करने की पहल की थी। ऋतु सैन ने जागरण के लिए लिखे गए अपने एक खेल में बताया कि स्वच्छ शहर का यह विचार उनके मन में आमिर खान के ओपिनियन मेकिंग टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ को देखकर आया था। जून 2014 में मुझे अंबिकापुर कलेक्टर पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। मैंने अक्टूबर 2014 में नगरीय निकाय के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की पहली बैठक बुलाई। इसमें कचरे के उठान और उसके निपटान के तरीके को समझने की कोशिश की। अफसरों द्वारा दी गई जानकारी ने चौंकाया, क्योंकि शहर से कचरा हटाने में बड़ी राशि खर्च हो रही थी, फिर भी शहर साफ नजर नहीं आ रहा था। अभी हम शहर को कचरे से मुक्ति दिलाने की योजना ही बना रहे थे कि जनवरी 2015 में अंबिकापुर नगर निगम में नई सरकार बन गई। एक बार तो नई शहर सरकार में व्यवस्था को बदलना ही चुनौती जैसा लगने लगा। हालांकि मैं खुशकिस्मत रही, जो अंबिकापुर शहर के जनप्रतिनिधि और नागरिक इस चुनौती में मेरे साथ खड़े हो गए।
हमने तय किया कि क्यों न घर-घर कचरा संग्रहण कराया जाए, ताकि शहर में कचरा नजर ही न आए। लेकिन इसके लिए मानव बल और निगम में कर्मचारी की उपलब्धता की समस्या आई। इसके बाद मैंने राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन से कुछ महिलाओं को जोड़ा और उन्हें प्रशिक्षण देकर डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन का काम शुरू कराया। शहर के एक वार्ड में एसएलआरएम सेंटर (सॉलिड,लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट) स्थापित कर वहां सूखा-गीला कचरा अलग-अलग रखने की शुरुआत हुई। कचरा अलग तो हो रहा था, लेकिन उसका ढेर भी लगने लगा था। इसके अलावा कचरा प्रबंधन में लगी महिलाओं को काम के बदले मानदेय देने की चुनौती आ गई। इसी दौरान दूरदर्शन पर अभिनेता आमिर खान निर्देशित धारावाहिक ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड में मैंने कोयंबटूर के एक छोटे से गांव में कचरा प्रबंधन का काम करने वाले सी. श्रीनिवासन की तकनीक को देखा। मैंने उनसे संपर्क किया और अंबिकापुर शहर बुलवाया, जहां उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। इसके बाद शुरू हुआ वह काम, जिसने आज शहर को स्वच्छता के क्षितिज पर पहुंचा दिया है। मानदेय की समस्या दूर करने के लिए जनप्रतिनिधियों ने सामूहिक निर्णय लेकर घर-घर से यूजर चार्ज लेने का संकल्प लिया। इसमें नागरिकों ने भी सहयोग किया। सूखे कचरे को बेहतर तरीके से अलग रखा जाने लगा। उस दिन बेहद खुशी और साहस मिला, जब घर-घर से लाए गए कचरे और कबाड़ से भरी गाड़ियां उसे बेचने के लिए निकलीं। इससे हुई आय और यूजर चार्ज को मिलाकर पहली बार हमने कचरे का प्रबंधन करने वाली स्वच्छता दीदियों को मानदेय दिया।
भारत सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण-2017 में जब अंबिकापुर शहर देश के 15वें स्वच्छ शहर और दो लाख की आबादी वाले शहरोंमें देश का पहला स्वच्छ शहर बना तो मन गदगद हो उठा। जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों, नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी ने आज इस छोटे से शहर को स्वच्छता के नक्शे में सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर दिया है। मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं जिस बदलाव की नींव शहर में डाल रही हूं, वह पूरे छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों के लिए नजीर बन जाएगी। खुशी तब दोगुनी हो गई, जब मेरे स्थानांतरण के बाद भी यह सब कुछ उसी रफ्तार से चलता रहा। इस शानदार उपलब्धि में जन-जन का सहयोग रहा। खासतौर से स्वच्छता कार्य में लगे लोग और मेरी प्यारी स्वच्छता दीदियों का।
शहर ने भी उन्हें खूब मान-सम्मान और स्नेह दिया। इस अभियान से जुड़ना सबका कर्तव्य है, यह बात सभी के मन में घर कर गई। यहां तक कि आमजन उस कचरे को भी डस्टबिन के हवाले करते थे, जो उन्होंने फैलाया ही नहीं था। अच्छा यह है कि यह सब कुछ अब लोगों की आदतों में शामिल हो गया था। अंबिकापुर मॉडल अब छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय निकायों में लागू है। यही नहीं, देश के कई शहरों के लिए भी यह एक मॉडल के रूप में है। यहां के नागरिक सिस्टम में बदलाव की चुनौती को स्वीकार कर देश के अन्य शहरों के लिए उदाहरण बन गए हैं। मैं वर्तमान में दिल्ली में पदस्थ हूं, लेकिन अंबिकापुर की उपलब्धियों सुनकर बेहद खुशी और सुकून मिलता है। ”