जगदलपुर। कोरोना संकट के दौर में नक्सल प्रभावित बस्तर में फोर्स के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। जवान नक्सलियों के साथ कोरोना संक्रमण से भी जूझ रहे हैं। शनिवार को दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के एक जवान की कोरोना से हुई मौत के बाद फोर्स की चिंता बढ़ गई है। अफसरों का कहना है कि यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि नक्सल ऑपरेशन को तो बंद नहीं किया जा सकता है। कोरोना से बचना भी एक चुनौती है।
बस्तर के नक्सल मोर्चे पर पदस्थ 50 हजार से ज्यादा जवानों में से अधिकतर केंद्रीय बलों के जवान हैं, जो विभिन्न राज्यों से यहां आए हैं। कोरोना के दौर में छुट्टी से लौटने वाले अधिकांश जवान कोरोना संक्रमित पाए जा रहे हैं। संभाग में वर्तमान में कोरोना के लगभग एक हजार मामले हैं, जिनमें करीब आधे फोर्स के जवानों से संबंधित हैं। अब तक 400 से ज्यादा जवान कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। बाहर से लौटने वाले जवानों के लिए 14 दिनों का क्वारंटाइन आवश्यक है।
विभिन्न बलों के बटालियन के स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं। नियत अवधि तक सामान्य रहने पर ही उन्हें कैंपों में भेजा जा रहा है। इसके बावजूद संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है। जवानों का खानपान उचित होने और नियमित व्यायाम की वजह से उनके स्वस्थ होने की दर काफी ज्यादा है। कोरोना पॉजिटिव मिलते ही उन्हें रायपुर स्थित एम्स या जगदलपुर के महारानी अस्पताल में भर्ती किया जा रहा है। सतर्कता बरतने के बावजूद एक जवान की मौत के बाद अब बस्तर आइजी सुंदरराज पी ने नए सिरे से कोरोना गाइडलाइन जारी की है। शारीरिक दूरी का पालन, सैनिटाइजर व मॉस्क का उपयोग, गश्त के दौरान ग्रामीणों के संपर्क से बचने के निर्देश जारी किए गए हैं। कैंपों के खानपान में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों को शामिल किया गया है।
बस्तर में सीआरपीएफ की तैनाती नक्सल मोर्चों पर अधिक है। यहां आइटीबीपी, बीएसएफ, एसटीएफ और स्थानीय पुलिस की कंपनियों के बीच पांच सीआरपीएफ की बटालियन तैनात हैं। कोरोना काल में भी डीआरजी व अर्ध सैन्य बलों के जवान लगातार सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। जवानों को जंगल में कोरोना के साथ मौसम की मार भी झेलनी पड़ रही है।
कोरोना में भी ऑपरेशन नहीं रोका जा सकता, क्योंकि नक्सलवाद भी किसी वायरस से कम नहीं है। जवानों की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी है। हमने उन्हें सतर्कता बरतने को कहा है।