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✍ कोरोना के चलते इस पारंपरिक पर्व को थोड़ा अलग ढ़ंग से मनाने की तैयारी ……

इस बार कोरोना के चलते इस पारंपरिक पर्व को थोड़ा अलग ढ़ंग से मनाने की तैयारी चल रही है

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कोंडागांव। धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ अपनी कृषक परम्पराओं को लेकर जाना जाता है। इस के उत्सव- पर्व, खेती- किसानी पर आधारित होते हैं। धान की रोपाई से लेकर फसल कटने तक यह के किसान विभिन्न प्रकार के सामूहिक उत्सव और पर्व मनाते हैं। धान की फसल में जब बाली आना शुरू होती है तो नवाखाई पर्व मनाया जाता है। वैसे तो इस पर्व पर लोग सार्वजनिक रूप से उत्सव का आयोजन कर खुशियां मनाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते इस पारंपरिक पर्व को थोड़ा अलग ढ़ंग से मनाने की तैयारी चल रही है।

बस्तर अंचल में नवाखाई का त्यौहार शनिवार 27 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा। बस्तर में किसानों का यह एक प्रमुख त्यौहार है। इस दिन घर में नए चावल नए धान के चावल को सबसे पहले कुलदेवी के समक्ष पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद कुलदेवी को भोग अर्पण किया जाता है। लोग चावल का प्रसाद स्वरूप भोग ग्रहण करते हैं। माना जाता है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को उस दिन नए धान के चावल का भोग करना चाहिए। बस्तर में इस दिन पूर्वजों की भी पूजा की जाती है। दूर- दराज में रहने वाले शासकीय कर्मचारी हों या कारोबारी, इस दिन नए चावल का भोग ग्रहण करने यानि नयनवा खाने और उत्सव मनाने के लिए जरूर अपने घर पहुंचते हैं। नुआखाई के त्यौहार की तैयारी लगभग सप्ताह भर पूर्व से ही शुरू हो जाती है। ग्रामीण नुआखाई के लिए दिवाली और ईद की तरह ही नया कपड़ा वस्त्र अवश्य खरीदते हैं। घर में सभी सदस्य नया वस्त्र पहनकर कुलदेवी व अन्य देवी- देवताओं की पूजा करते हैं। इसके बाद अच्छे फसल की कामना के साथ नए अन्न का भोजन ग्रहण किया जाता है। इस त्यौहार के साथ किसान की खुशहाली और सुख समृद्धि की अनुकंपाएं जुड़ी हैं। पश्चिम उड़ीसा में भी यह त्यौहार इसी दिन मनाया जाता है। सीमा पर होने के कारण दोनों प्रदेश की संस्कृति में काफी समानता है। नुआखाई का त्यौहार प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी के पश्चात नवमी तिथि भाद्र पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसी के चलते लोग नवाखाई मनाने के लिए नवमी से पूर्व ही गणेश विसर्जन करना उचित समझते हैं। बड़ी संख्या में लोग नया खाई त्यौहार मनाने के उद्देश्य से नवमी तिथि से पूर्व गणेश विसर्जन कर देते हैं।

जोहार भेंट के साथ ही इस नुआखाई महापर्व का अंत होता है। इसी दिन इस दिन आपसी मतभेद व लड़ाई- झगड़े भुलाकर बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद मांगते हैं। अब अब धीरे- धीरे प्रचलन में बदलाव आते दिख रहा है और लोग जगह-जगह नुआखाई जुहार का कार्यक्रम करते हैं, जिसमें राजनीतिक रंग भी नजर आता है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते इस तरह के आयोजन नहीं होंगे।

नया खाने का त्योहार किसानों व आदिवासियों में परंपरागत रूप से बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। कोरोना वायरस संक्रमण के दौर को देखते हुए सीमित तौर पर सामूहिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा और यहां लोगों को मास्क पहन कर आयोजन में शामिल होना होगा। कोविड 19 के नियमों को देखते हुए शारीरिक दूरी का पालन भी करना होगा। नुआखानी में इस वर्ष कोई बड़ा आयोजन नहीं हो पाएगा। इसके पूर्व वर्षों में नवा खानी पर जोहार भेंट के लिए विधायक, मंत्री, सांसदों की उपस्थिति में भव्य आयोजन होते थे।

नवाखाई मनाने की रूपरेखा तय करने के लिए त्यौहार से 2 या 3 दिन पहले गांव में बैठक का आयोजन होता है। जिसमें यह भी निर्णय लिया जाता है कि ठाकुर जोहारनी का पर्व कब और किस तरह मनाया जाएगा, मुख्य अतिथि कौन होंगे, ठाकुर जोहारनी पर मुख्य अतिथि इसी दिन तय किया जाता है। साथ ही अन्य विषयों पर भी चर्चा होती है। सर्व समाज संगठन जिला अध्यक्ष बंगाराम सोरी ने कहा कि नवा खानी का त्यौहार पीढियों से मनाते आ रहे हैं। गुरुवार को देवी देवताओं की पूजा के पश्चात नया धान की पूजा भी होगी। इस वर्ष कोविड-19 को देखते हुए शासन के दिशा निर्देश का पालन करते हुए नवा खानी का त्यौहार मनाएंगे। ठाकुर जोहारनी जहां प्रतिवर्ष बड़ी धूमधाम से मनाते थे, इस वर्ष सिर्फ रस्म अदायगी होगी।

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