कोरिया। हाल ही में मध्य प्रदेश के गुना जिले में प्रशासन ने एक गरीब परिवार पर जमीन में अतिक्रमण कर खेती करने का आरोप लगाते हुए खडी फसल को जेसीबी से रौंधवा दिया था था। इसके साथ ही फसल बचाने के लिए गुहार लगाते परिवार के सदस्यों की पिटाई भी पुलिस वालों द्वारा की गई थी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद प्रशासन की इस कार्रवाई की काफी आलोचना हुई। इसी तरह का एक मामला छत्तीसगढ में कोरिया जिले में भी सामने आया है। यहां 20 साल से सरकारी जमीन में कच्चा मकान बना कर रहे रहे एक बुजुर्ग दंपति को घर से बाहर निकाल कर प्रशासन की टीम ने उनके घर को जेसीबी से तुडवा दिया। इसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति रात भर खुले आसमान के नीचे रोते बिलखते बैठे रहे।
मनेंद्रगढ़ क्षेत्र में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने निर्दयिता का परिचय देते हुए एक गरीब आदिवासी का घर जेसीबी चलवाकर गिरावा दिया। अधिकारियों के द्वार जब इस कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा था तब बुजुर्ग दंपत्ति उनके सामने बार-बार मिन्नते कर रहे थे, लेकिन अधिकारियों ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने कहा कि ऊपर का आदेश है वह कुछ नहीं कर सकते।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है, कि भरी बरसात में जब पक्षियों का भी आशियाना नहीं हटाया जाता तो आखिर अधिकारियों को ऐसी क्या जरूरत पड़ी जो उन्होंने प्रशासनिक आदेश का हवाला देते हुए एक बुजुर्ग आदिवासी परिवार का मकान ही गिरा दिया।
एक तरफ सरकार हर व्यक्ति के लिए खुद के आवास की बात कर रही है तो वहीं दूसरी ओर इस तरह से गरीबों के आशियाने उजाडे जा रहे हैं। कब्जा हटाने से पहले परिवार का व्यवस्थापन किया जाना था, लेकिन ऐसा न कर बर्बरता पूर्ण कार्रवाई की गई। पीडित का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोग इस तरह की कार्रवाई की आलोचना कर रहे हैं।
मिली जानकारी के अनुसार मनेंद्रगढ़ के ग्राम पंचायत चैनपुर के टिकरापारा में रहने वाले शिवलाल गौड़ ने लगभग 20 वर्ष पूर्व अपने रहने के लिए शासकीय भूमि पर दो कच्चे के कमरे बनाए थे, जहां वह रह कर अपना गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन बीते कुछ दिनों से अधिकारियों के द्वारा बार-बार उन्हें भागने को कहा जा रहा था।
इसी बीच गुरुवार की शाम मनेंद्रगढ़ के राजस्व विभाग के अधिकारी जेसीबी लेकर उसके घर के पास पहुंचे और बिना किसी नोटिस दिए उसके मकान को गिरा दिया। भारी बरसात में आदिवासी दंपत्ति खुले में रात गुजर पूरी रात रोते रहे। अब इस घटनाक्रम को लेकर राजनीति ही शुरू हो गई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसा कौन सा निर्माण कार्य किया जाना था कि बुजुर्ग आदिवासी परिवार का मकान बरसात में गिराना जरूरी हो गया।