बिलासपुर। जलकुंभी अब समस्या नहीं रही गई। इसका बढ़ना जल्द ही लाभकारी हो जाएगा। इससे महिलाओं के लिए नए अवसर सृजित हुए हैं। नेचर बॉडी संस्था की पूनम और हिमांगी ने जलकुंभी से सेनेटरी नैपकिन बनाया है। मुश्किल दिनों में जलकुंभी की उपयोगिता कायम करने के लिए इंजीनियरिंग के छात्र उत्तम तंबोली ने उनका तकनीकी सहयोग किया। तीनों ने मिलकर जलकुंभी पर रिसर्च किया और उसके सोखने की क्षमता और प्राकृतिक रूप से अपघटित होने के गुणों के आधार पर नैपकिन तैयार किया।
यह महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ ही प्राकृतिक रूप से भी उत्तम है और आर्थिक रूप से भी कम दर में मिलेंगी। इसकी विस्तृत रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के नई दिल्ली कार्यालय में भेजी गई जहां से इस प्रयोग को स्वीकृति मिल गई है। सितंबर महीने से बाजार में उपलब्ध कराने के लिए बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू होने की भी योजना है।
टीम के सदस्यों का कहना है कि वैसे तो जलकुंभी जलीय खरपतवार है। इसका विकास काफी तेजी से होने पर जल की सतह में यह जल्द फैल जाता है और जल के निरंतर वाष्पीकरण के कारण जलाशय को कीचड़ में परिवर्तित करने लगता है। जल की गुणवत्ता को खत्म करता है और जल पर आश्रित जीवों को क्षति पहुंचता है। वहीं यदि इसके तने का फूला हुआ भाग सूखने पर फिर से जल के संपर्क में आता है तो कुंभी का विस्तार होने लगता है।
इसके मोटे और फूले हुए तने के भाग को एकत्रित करने के बाद इसे स्टीम पद्घिति से सैनिटाइज किया जाता है। जिससे भाप में काफी देर रहने के बाद इसका हरा रंग हल्का भूरा हो जाता है। फिर इसके रेशे को सुखाकर कॉटन के माध्यम से नैपकिन तैयार की जाती है।